हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा सल्लम ने इरशाद फ़रमाया
फ़ातिमा बदअतुम मिन्नी
फ़ातिमा मेरा हिस्सा है
फ़ातिमा मेरा टुकड़ा है
फ़ातिमा मेरी जान का हिस्सा है
हुज़ूर ने बदआ और बिदआ का लफ्ज़ इरशाद फ़रमाया
ये वो टुकड़ा या हिस्सा नही है जो हर बेटी अपने बाप का होती है
बल्कि फ़रमाया मेरी दो तिहाई जान फ़ातिमा में है
इसी तरह और एक मक़ाम पर हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया
" फ़ातिमता मुदग़तुन मिन्नी "
फ़ातिमा मेरा दिल है
मुदग़ा अरबी में दिल को कहते हैं
दिल ज़िन्दगी और रूह का मरकज़ होता है दिल मरकज़े रूह है यानि हुज़ुर ने फ़रमाया
" फ़ातिमा का वो ताल्लुक़ है मेरी जान के साथ
फ़ातिमा मेरी मरकज़े रूह है
मेरी रूह फ़ातिमा में है
इसलिए जब फ़ातिमा बोलतीं हैं तो मेरा कलाम और मेरी मारिफ़त बोलती है
मुदग़ा का दूसरा माने है
माँ के पेट में बच्चे के मुदग़ा में रूह डाली जाती है
हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया
"फ़ातिमा बदअतुम मिन्नी"
"फ़ातिमता मुदग़ातुम मिन्नी"
जिसका मतलब हुआ
फ़ातिमा मेरा वो टुकड़ा है जिसमे मेरी रूह है
मेरी रूह फ़ातिमा में है इसलिए वो चलती है तो उसका चलना मेरी तरह का है
वो बोलती है तो उसका बोलना मेरी तरह का है
वो जब कलाम करती है तो उसका शाऊर मारिफ़त मेरी तरह की है
वो देखने में और नाम में फ़ातिमा है पर वो बातिन में मुहम्मद ए मुस्तफ़ा की रूह है
(सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा असहाबेहि वा बारिक वा सल्लिम)
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